🙏 जय श्रीराम साथियो!
मैं हूँ आपका अपना Sunil Chaudhary – Digital TandavAcharya और आज मैं आपके सामने एक ऐसा मुद्दा लेकर बैठा हूँ, जिसे मीडिया अक्सर अनदेखा कर देता है। लेकिन ये मुद्दा सिर्फ लद्दाख का नहीं, बल्कि पूरे भारत की आत्मा का है। आज मैं आपसे खुलकर बात करूँगा—लद्दाख आंदोलन, सिक्स्थ शेड्यूल, राज्य का दर्जा और BJP कार्यालय में लगी आग के बारे में। ये कहानी सिर्फ एक विरोध की नहीं है, ये कहानी है उस आवाज़ की जिसे बरसों से दबाया जा रहा है।
लद्दाख की आग और भारत का अनसुना कोना
दोस्तों, जब हम भारत की बात करते हैं तो हमारी नज़र दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और कश्मीर वैली पर जाती है। लेकिन उसी नक्शे पर एक कोना है—लद्दाख। बर्फ़ से ढकी चोटियाँ, बौद्ध मठों की शांति और सैनिकों का साहस—ये जगह हमेशा भारत की शान रही है।
2019 में जब धारा 370 हटाई गई और लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग करके Union Territory बनाया गया, तब लगा था कि अब यहाँ विकास की नयी सुबह होगी। लेकिन हुआ इसके उलट। लद्दाख के लोग आज भी कह रहे हैं—“हमें राज्य का दर्जा चाहिए, हमें सिक्स्थ शेड्यूल चाहिए।”
सिक्स्थ शेड्यूल क्या है और क्यों ज़रूरी है?
आप सोच रहे होंगे, ये सिक्स्थ शेड्यूल आखिर है क्या?
सीधे शब्दों में समझिए—ये संविधान का वो प्रावधान है जो जनजातीय क्षेत्रों को खास अधिकार देता है।
पूर्वोत्तर के चार राज्यों—असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम—में ये लागू है। यहाँ ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल्स बनती हैं जो यह तय करती हैं कि वहाँ कौन सी ज़मीन खरीदी जाएगी, कैसे विकास होगा और उनकी संस्कृति कैसे सुरक्षित रहेगी।
लद्दाख के लोग यही मांग रहे हैं। क्यों?
- यहाँ की 97% आबादी जनजातीय है।
- यहाँ की बौद्ध और मुस्लिम दोनों ही आबादी अपनी पहचान बचाना चाहती है।
- यहाँ पर्यटन और बाहरी निवेश से डर है कि कहीं उनकी संस्कृति और जमीन उनसे छिन न जाए।
शांतिपूर्ण आंदोलन से आग तक का सफर
साथियो, यह आंदोलन कोई एक दिन का नहीं है।
10 सितंबर से लेह अपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक फ्रंट भूख हड़ताल कर रहे थे।
लोग सड़कों पर उतर आए थे, पर आंदोलन पूरी तरह शांतिपूर्ण था।
लेकिन जब भूख हड़ताल पर बैठे लोगों की हालत बिगड़ी और पुलिस ने उन्हें ज़बरदस्ती उठाया, तभी माहौल भड़क गया। नतीजा यह हुआ कि BJP ऑफिस को आग के हवाले कर दिया गया।
अब सवाल ये है—क्या हर आंदोलन को “Toolkit” कहकर खारिज कर देना सही है?
मेरे हिसाब से नहीं। ये कोई बाहरी ताक़तों का खेल नहीं है। ये है लद्दाखियों की genuine मांग।
कश्मीर वैली और लद्दाख की अनसुनी आवाज़
मुझे एक बात हमेशा चुभती है। हम जम्मू-कश्मीर का मतलब सिर्फ कश्मीर वैली मान लेते हैं।
अगर लाल चौक पर lights जल गईं, अगर किसी नेता ने तारीफ़ कर दी, तो हम मान लेते हैं कि सब खुश हैं।
लेकिन सोचिए—क्या कारगिल खुश है? क्या लेह खुश है? क्या नुब्रा और जंस्कार खुश हैं?
सच यह है कि लद्दाख को सौतेला व्यवहार मिल रहा है।
राजनीति का खेल और असली सवाल
विपक्ष क्या करेगा? कहेगा—देखो BJP के खिलाफ आगज़नी हुई।
BJP क्या कहेगी? कहेगी—Toolkit active है।
लेकिन असली सवाल? वो कहीं खो जाता है।
असली सवाल यह है कि क्या लद्दाख की मांग जायज़ है या नहीं?
और मेरा जवाब है—हाँ, 100% जायज़ है।
ये आंदोलन किसी बाहरी एजेंडे का हिस्सा नहीं है। यह आंदोलन है भारत माता के असली पहरेदारों का, जो हमारी सीमाओं पर खड़े हैं और अपनी संस्कृति को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
सुरक्षा बनाम आत्म-शासन
कुछ लोग कहते हैं कि अगर लद्दाख को राज्य बना दिया गया तो border sensitive हो जाएगा।
मैं उनसे पूछता हूँ—तो फिर पंजाब क्या है? बंगाल क्या है?
क्या ये सब border states नहीं हैं?
Border की सुरक्षा BSF और सेना करती है।
तो इस बहाने से लद्दाख की मांग को दबाना किसी भी तरह सही नहीं है।
मेरी तांडव अपील
साथियो, सरकार से मेरी साफ अपील है—
👉 लद्दाख को self-governance का अधिकार दीजिए।
👉 उन्हें Sixth Schedule में शामिल कीजिए।
👉 उनकी संस्कृति, उनकी जमीन और उनकी पहचान की रक्षा कीजिए।
लद्दाख के लोग सिर्फ बर्फ़ीली चोटियों पर नहीं रहते, वो हमारी राष्ट्रीय पहचान की ऊँचाई हैं। उन्होंने हमेशा भारत की रक्षा की है, अब हमारी बारी है उनका सम्मान करने की।
निष्कर्ष: भारत सिर्फ घाटी नहीं, पूरा भूगोल है
दोस्तों, याद रखिए—भारत सिर्फ कश्मीर वैली नहीं है। भारत है जम्मू, भारत है लद्दाख, भारत है पूरा भूगोल।
अगर आप मानते हैं कि लद्दाख की मांग जायज़ है, तो इस मुद्दे पर आवाज़ उठाइए।
सरकार से सवाल कीजिए। क्योंकि विकास वही टिकेगा जहाँ संवाद और सम्मान होगा।
जय हिंद 🚩 वंदे मातरम्।